विशाल रजक तेन्दूखेड़ा! भारतीय संस्कृति का एक अपना अस्तित्व है, अपना एक महत्व है, जो संसार के किसी देश में अत्यंत दुलर्भ है, भारतीय संस्कृति में पुरातत्वीय खजाना, जो अपने युग की विशिष्ठता को स्वयं में समाहित किये, अपने अस्तित्व को स्वयं में सजोये अपनी गाथा को अपने अदृष्य मुखारबिन्दों से अपनी कलाकृति के साथ स्वयं ही कह देते है चाहे वह कलाकृति को सजीवता लिए हुए मूर्तिया हो, लेख हो या अवशेष अपनी ऐतिहासिक परिपूर्णता, कलाकृक्ति संस्कृति, रीतिरिवाज प्रथायें स्वयं ही विलुप्त प्राय: ऐतिहासिक गाथा कहनें में समर्थ हैं। ऐसी ही 500 वर्ष पुरानी अत्यंत दुलर्भ भगवान गणेश की प्रतिमा है जो आज भी जीवंत अवस्था में दमोह जिले के जबलपुर मुख्य सड़क मार्ग पर स्थित है। तेजगढ़ ग्राम में अत्यन्त प्राचीन मंदिर में आज भी उपलब्ध है। यह प्राचीन मंदिर प्रतिभा ऐतिहासिक राजा तेजी सिंह के शासन काल की प्रतिमा होने का संकेत देती है
तेजगढ़ गांव में स्थापित है यह प्रतिमा
तेंदूखेड़ा मुख्यालय से 20 किमी दूर तेजगढ़ गांव में भगवान गणेश की यह प्रतिमा विराजमान है जो अष्टभुजा रुप में है। यहां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। आज तक इस प्रतिमा के बारे में कुछ पता नहीं लग पाया कि आखिर यह प्रतिमा यहां कैसे आई। गांव के बुजुर्गों की अपनी अलग-अलग राय है। वृद्ध कहते हैं कि उनके पूर्वजों ने उन्हे बताया कि यहां भगवान गणेश की अष्टभुजा प्रतिमा पांच सौ वर्ष पूर्व जमीन के नीचे से प्रकट हुई थी। जिसे तेजगढ़ के राजा तेजी सिंह ने गणेश घाट के समीप स्थपित कराया था। उसी समय से उस घाट का नाम भी गणेश घाट पड़ गया। इसके साथ तेजगढ़ गांव को भी राजा तेजी सिंह ने ही बसाया था शिक्षक महेंद्र दीक्षित श्याम सुंदर यादव, अनूप ठाकुर ने बताया कि यह मंदिर एतिहासिक है और प्रतिमा काफी प्राचीन है जिसकी जानकारी उन्हे भी बुजुर्गों से मिली है। शिक्षक महेंद्र दीक्षित ने बताया कि पांच सौ वर्ष पहले ओरछा के हरदोल का जन्म हुआ था और उसी समय राजा तेजी सिंह का भी जन्म हुआ और उन्ही के राज में यह प्रतिमा स्थापित है। तेजगढ़ में आज से 70 वर्ष पूर्व से ग्रामीण क्षेत्रों में गणेश प्रतिमाएं स्थापित होने लगी हैं नहीं तो तेजगढ़ सहित आसपास के पचास गांव में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं होती थी। भगवान गणेश के मंदिर के पास ही एक प्रतिमा स्थापित की जाती थी जो आज भी स्थापित होती है। आज भले ही क्षेत्र में कई स्थानों पर गणेश प्रतिमाओं की स्थापना होने लगी, लेकिन तेजगढ़ मंदिर में पूजा आज भी उसी पुराने रीति रिवाज के अनुसार होती है
नए मंदिर को दिया गया आकार
गणेश प्रतिमा की स्थापना के बारे में गांव के किसी भी व्यक्ति को नहीं पता। लोगों का कहना है कि प्रतिमा की स्थापना की जानकारी ग्रंथों के माध्यम से मिली है, जिसमें स्थापना तेजी सिंह के द्वारा किए जाने की जानकारी मिलती है। करीब 80 साल पहले प्रतिमा मंदिर के नीचे की ओर धंसने लगी थी, तब फतेहपुर गांव के कोई संत यहां आए थे। इसके बाद प्रतिमा को बाहर निकाला गया प्रतिमा के ऊपर काफी बड़ी मात्रा में सिंदूर निकला था, जिसे नर्मदा नदी में बहाया गया था और फिर सभी के सहयोग से नए मंदिर का आकार दिया गया जो काफी विख्यात है कहा जाता है कि पांच सौ वर्ष पूर्व यहां अष्टभुजा के रुप में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की गई थी। क्षेत्र के पूरे जिले के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। प्रत्येक शनिवार को पूजा अर्चना के साथ भगवान गणेश का सिंदूर से श्रंगार किया जाता है
स्वयंभू मानी जाती है प्रतिमा
प्रतिमा के बारे में किसी को सटीक जानकारी नहीं है। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि प्रतिमा जमीन के नीचे से मिली थी। जिसे तेजगढ़ के राजा तेजी सिंह ने गणेश घाट के समीप स्थापित कराया था। उस समय से घाट का नाम भी गणेश घाट पड़ गया। तेजगढ़ गांव को भी राजा तेजी सिंह ने ही बसाया था। गांव में स्थापित प्रतिमा बेहद दुर्लभ है, ऐसी प्रतिमा देश में कहीं और देखने को नहीं मिलती
समाजसेवियों ने कराया जीर्णोद्धार
तेजगढ़ में वर्ष 2013 में प्रदीप सोनी नाम के थाना प्रभारी आए थे जिन्होंने पुण्य रुचि लेकर समिति बनाई और मंदिर का जीवन अवधारणा शुरू हुआ, जिसमें 20 लाख रुपए खर्च हुए। इसमें थाना प्रभारी से हर्ष यादव थाना प्रभारी ने भी रुचि ली और मंदिर के धीरे धीरे समस्त ग्राम वासियों ने दानवीरों ने दान देकर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। 2013 में मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू हुआ 2017 में बहुत बड़ा जै जै सरकार के नेतृत्व में यज्ञ हुआ और मंदिर का उद्घाटन हुआ। मंदिर की गर्भ गृह भी बनाया गया। पहले मूर्ति बहुत रसातल में नीचे थी पर नया गर्भ गृह बनाया गया। पहले मूर्ति पूरे केसरिया कलर में थी लेकिन 2017 में मूर्ति को नया रूप दिया गया। यहां विगत करीब 70 वर्षों से गणेश जी रखने की परंपरा भी इसी मंदिर में जारी है। कहा जाता है कि जब पूरे क्षेत्र में कहीं भी गणेश जी नहीं रखे जाते थे. तो गणेश मंदिर में ही गणेश जी रखे जाते थे। शिक्षक महेंद्र कुमार दीक्षित, मुन्नालाल कुश्ती, रामकिशन झरिया, हरि सिंह यादव, बहू भोजराज गोष्टी राजकुमार साहू, कश्यप नामदेव, नीरज असाटी, डॉक्टर सोनी, गोविंद साहू आदि लोगों ने रुचि लेकर मंदिर उत्थान कार्य में लगातार तीन वर्ष तक जुटे हुए हैं। ग्रामीण बताते हैं कि गांव से निकली नदी के उफान पर होने पर लंबोदर ने ही शांत किया था।