फ्लैश बैक- परवीन बाॅबी,एक खूबसूरत अदाकारा।

सोमेश तिवारी

आज हम बात कर रहे है सत्तर व अस्सी के दशक मे हिंदुस्तानियों के दिलों पर राज करने वाली निहायती खूबसुरत फिल्म अदाकारा परवीन बाॅबी की। गुजरात के जूनागढ़ में 04 अप्रेल 1949 को जन्मीं परवीन एक कुलीन मुस्लिम पश्तून परिवार से आयीं थीं. उनके पिता का नाम था, वली मोहम्मद खान बॉबी जिनका साया तब उठ गया था जब वो दस साल की थीं. वो कान्वेंट एजुकेटेड थीं. और बलां की खूबसूरत भी।एक पार्टी में ‘चेतना’ फेम बी.आर.ईशारा ने उन्हें देखा और ‘चेतना पार्ट-टू’ यानी ‘चरित्र’ (1973) में एक ऐसी लड़की का किरदार ऑफर किया जिसके पिता कर्ज में डूबे थे और क़र्ज़ देने वाला उनकी बेटी का शारीरिक शोषण करता था और जब वो गर्भवती हो गयी तो उसे अपनाने से इंकार कर दिया. परवीन को ये किरदार बहुत चुनौतीपूर्ण लगा. एक अन्य आकर्षण था मशहूर क्रिकेटर सलीम दुर्रानी का इसमें नायक होना। ‘चरित्र’ तो फ्लॉप हो गयी और नायक सलीम दुर्रानी भी नही चले मगर परवीन चल निकली। त्रिमूर्ति, 36 घंटे, मजबूर, दीवार, काला सोना, भंवर, बुलेट, मामा-भांजा, दरिंदा, चांदी-सोना, चलता पुर्ज़ा, अमर अकबर अंथोनी, चोर सिपाही, काला पत्थर, सुहाग, दो और दो पांच, दि बर्निंग ट्रेन, शान, क्रांति, कालिया, नमक हलाल, खुद्दार, अर्पण, रंग-बिरंगी, महान आदि करीब साठ से ऊपर फ़िल्में कीं. ज़्यादतर हिट हुई. विनोद पांडे की ‘ये नज़दीकियां’ और इस्माईल श्रॉफ की ‘दिल आखिर दिल है’ में वो ‘दूसरी औरत’ रहीं और ये उनके पसंदीदा किरदार रहे. विलंब से रिलीज़ ‘आकर्षण’ (1988) उनकी आख़िरी फिल्म रही. जे.ओमप्रकाश की ‘अर्पण’ (1983) में वो एक सीधी-सादी घरेलू महिला के रूप में दिखीं जो उनके ग्लैमरस कैरीयर और व्यक्तिगत जीवन की बिंदास छवि के एकदम विपरीत किरदार रहा…असां हुड़ उड़ जाणा ए, दिन रेह गए थोड़े…किन्तु उनके इस किरदार की चर्चा ज़्यादा नहीं हुई, बल्कि मनोज कुमार की ‘क्रांति’ का वो बोल्ड डांस चर्चित रहा…मारा ठुमका बदल गयी चाल मितवा…बेचारी नायिका हेमा मालिनी का रेन डांस भी फीका पड़ गया…ज़िंदगी की न टूटे लड़ी…इसके अलावा भी रात बाकी…(नमक हलाल) और रात बाकी बात बाकी…प्यार करने वाले जीते हैं शान से…(शान) जैसे आईटम सांग्स में उन्हें बहुत पसंद किया गया. ये सुनहरी दुनिया है ही ऐसी, यहां चमक के ही ख़रीदार हैं।

सत्तर के दशक में  वो महफ़िलों में ही नहीं आम ज़िंदगी में भी कम कपड़ों में नज़र आती थीं, सिगरेट और शराब पीती थीं. यानी वो हर वो काम करती थी जिसे मर्द किया करते थे. वो कई लोगों के साथ ‘लिव इन रिलेशन’ में रहीं जिसे उन्होंने कभी छुपाया नही, वस्तुतः वो वक़्त से बहुत आगे थी।।
अपने दौर में परवीन का जलवा इतना ज़बरदस्त था कि उनकी समकालीन ज़ीनत अमान, हेमा मालिनी, रेखा जैसी हीरोइन के स्टारडम को भी हिला दिया था। और तहलका तो तब मचा जब अमेरिका की ‘टाइम्स’ मैगज़ीन के कवर पेज पर उन्हें उनकी खूबसूरती के कारण जगह मिली. बॉलीवुड की तमाम हीरोइनें जलभुन कर राख हो गयीं। वो खूबसूरत होने के साथ-साथ टैलेंटेड भी थीं. मगर उनकी ट्रेजडी ये रही कि उन्हें उनके टैलेंट को एक्सपोज़ करती कोई फिल्म नहीं मिली, जिसके लिए उन्हें याद रखा जाए।

परवीन दूसरे कारणों से अधिक चर्चा में रहीं. पहले डैनी डेंजोगप्पा के साथ कई साल खुले आम ‘लिव इन’ में रहीं. फिर दोनों आपसी रज़ामंदी से अलग हो गए. डैनी ने एक इंटरव्यू में बताया था – ‘मगर परवीन ने पीछा नहीं छोड़ा. वो यदा-कदा मेरे घर आ धमकती थीं, इससे मेरी गर्ल फ्रेंड किम को बहुत आपत्ति रही.’ फिर कबीर बेदी के साथ रहने लगीं. लेकिन कबीर बेदी को विदेश में कैरीयर बनाना था. वस्तुतः कबीर की ज़िंदगी में परवीन की कोई जगह थी ही नही. परवीन ने ख़ुशी ख़ुशी उन्हें जाने दिया. अमिताभ बच्चन से उनकी नज़दीकियों के बहुत चर्चे रहे. अमिताभ ने उनके साथ आठ फ़िल्में की थीं जो अधिकतर हिट रहीं. पब्लिक भी उनकी जोड़ी को बहुत पसंद करती रही. फिर महेश भट्ट आये जिन्होंने उनके लिए अपनी पत्नी और बेटी को भी छोड़ दिया. लेकिन बहुत जल्दी ही महेश को समझ में आ गया कि वो आग से खेल रहे हैं. परवीन अजीबो-गरीब हरकतें करने लगी. वो वापस चले गए. इसके लिए उन्हें अपनी पत्नी की खासी मान-मनौवल करनी पड़ी. सुना गया था कि एक बार परवीन अर्धनग्न अवस्था में सड़क पर दौड़ने लगी थीं तब महेश भट्ट ने ही उन्हें बड़ी मुश्किल से काबू में किया. टॉप मनोचिकित्सक को दिखाया, जिन्होंने बताया कि कि परवीन ‘पैरानॉयड स्किज़ोफ्रोना’ नाम की बीमारी से पीड़ित है और ये बीमारी हालात के कारण हैं अथवा जेनेटिक भी हो सकते है. परवीन को हमेशा लगता था कि वो असुरक्षित है, कोई उन्हें मारना चाहता है. बाद में महेश भट्ट ने अपने इस अनुभव पर अवार्ड विनिंग ‘अर्थ’ (1982) भी बनाई.
बहरहाल, परवीन आध्यात्मिक गुरू यू.जी. कृष्णामूर्ति की संगत में शांति की तलाश में देश-विदेश घूमने लगी. एक बार वो अमेरिका के जॉन ऍफ़ केनेडी एयरपोर्ट पर इसलिए गिरफ्तार कर ली गयीं क्योंकि वो अपनी नागरिकता का कोई प्रमाण पत्र नहीं दे पायीं. जब भारतीय दूतवास को खबर लगी तो उन्हें छुड़ाया जा सका. इससे पहले खबर ये उड़ी थी कि परवीन बॉबी को अंडरवर्ल्ड ने किडनैप लिया है. दरअसल, परवीन की दुबई के एक अमीर व्यापारी अब्दुल इल्ला से नज़दीकियां आम थीं. ख़बर थी कि उन्होंने अमेरिकन नागरिकता ले ली है।
1989 में जब परवीन बॉबी इंडिया वापस आयीं तो बहुत मोटी हो चुकी थीं, आँखों के नीचे स्याह गड्ढे थे. एयरपोर्ट पर जब वो उतरीं तो उनके हाथ में एक तख्ती थी – परवीन बॉबी, ताकि लोग उन्हें पहचानने में भूल न करें. उन्होंने एक बार कई नामी हस्तियों के विरुद्ध थाने में रिपोर्ट भी लिखवाई कि इनसे उनको जान का खतरा है. इसमें अमिताभ बच्चन का नाम भी था, जिन्हें परवीन ने सुपर इंटरनेशनल गैंगस्टर बताया। वो पत्रकारों को तभी इंटरव्यू देती थीं जब अच्छी तरह से जांच-पड़ताल करके संतुष्ट हो जातीं कि वो उनकी हत्या करने नहीं आया. वो कुछ खाने से पहले पत्रकारों को खिलाती थीं, ये जानने के लिए कि किसी ने ज़हर तो नहीं मिला दिया. उन्हें अपने नौकरों पर शक़ रहने लगा कि उनके खाने में कोई ऐसा केमिकल मिलाया जा रहा है जिससे उनकी स्किन ख़राब हो जाए. उनकी इन हरकतों के कारण उनसे लोगों ने मिलना बंद कर दिया. नाते-रिश्तेदारों ने भी किनारा कर लिया. इक्का-दुक्का ही कभी-कभी ख़ैर-सल्लाह लेने आते थे.
परवीन बॉबी का अंत बहुत बुरा हुआ. एक दिन उनके एक पड़ोसी ने पुलिस को खबर दी कि परवीन का दरवाज़ा पिछले दो रोज़ से बंद है. दूध के पैकेट और अखबार बाहर रखे हैं. जब दरवाज़ा तोड़ा गया तो परवीन मृत पायी गयी. पोस्ट-मार्टन से पता चला कि करीब दो दिन पहले मृत्यु हुई थी. इस तरह उनकी मृत्यु की तिथि 20 जनवरी 2005 तय की गयी. पैरानॉयड स्किज़ोफ्रोना से वो पीड़ित थीं हीं, उन्हें पुरानी डाइबिटीज़ भी थी जिसके कारण उनके एक पैर में गैंग्रीन हो गया था. बहुत कष्ट में रहतीं थीं. घर में मूव करने के लिए व्हील चेयर का प्रयोग करती थीं. हालांकि उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था लेकिन जब अंतिम क्रिया की बात आयी तो उनके रिश्तेदारों ने उन्हें इस्लामिक रीति-रिवाज़ के अनुसार सिपुर्द-ए-ख़ाक किया. परवीन की प्रॉपर्टी, बैंक में नकदी और लॉकर में पड़े जेवरात को लेकर रिश्तेदारों ने हंगामा मचाया. महाराष्ट्र के स्टेट एडमिनिस्ट्रेटर जायदाद के कस्टोडियम नियुक्त किये गए. परवीन का उनके मार्गदर्शक मित्र मुराद खान बॉबी के साथ बैंक में लॉकर था. उसे खोला गया तो उसमें मिली वसीयत के अनुसार जायदाद का 70 फीसदी हिस्सा बॉबी परिवार के मजलूमों की मदद के लिए और 20 फीसदी मुराद खान बॉबी को मिला और बचा 10 फीसदी क्रिश्चियन मिशनरी को दिया गया।

Spread the love