नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने देश में औद्योगिक विकास को नई दिशा देते हुए 12 नए औद्योगिक स्मार्ट शहर बनाने का फैसला लिया है। इसके लिए राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (NICDP) के तहत 28,602 करोड़ रुपये के निवेश को मंजूरी दी गई है। यह फैसला भारत के औद्योगिक परिदृश्य को बदलने वाला साबित होगा। इससे आर्थिक विकास और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा।
क्या हैं खास बातें?
रणनीतिक निवेश: एनआईसीडीपी को बड़े एंकर उद्योगों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) दोनों से निवेश की सुविधा प्रदान करके एक जीवंत औद्योगिक इकोसिस्टम को बढ़ावा देने के लिए तैयार किया गया है। ये औद्योगिक नोड 2030 तक 2 ट्रिलियन डॉलर निर्यात प्राप्त करने के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेंगे। ये सरकार के आत्मनिर्भर और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी भारत के विजन को दर्शाता है।
स्मार्ट शहर और आधुनिक बुनियादी ढांचा: नए औद्योगिक शहरों को वैश्विक मानकों के ग्रीनफील्ड स्मार्ट शहरों के रूप में विकसित किया जाएगा। उन्हें ‘प्लग-एन-प्ले’ और ‘वॉक-टू-वर्क’ अवधारणाओं पर ‘मांग से पहले’ बनाया जाएगा। यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि शहर उन्नत बुनियादी ढांचे से लैस हों जो टिकाऊ और कुशल औद्योगिक कार्यों का समर्थन करते हैं।
पीएम गतिशक्ति पर क्षेत्रीय दृष्टिकोण: पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के अनुरूप परियोजनाओं में मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी बुनियादी ढांचा होगा, जो लोगों, वस्तुओं और सेवाओं की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करेगा। औद्योगिक शहरों को पूरे क्षेत्र के परिवर्तन के लिए विकास केंद्र बनाने की परिकल्पना की गई है।
‘विकसित भारत’ का विजन
इन परियोजनाओं की मंजूरी ‘विकसित भारत’ के विजन को साकार करने की दिशा में एक कदम है। वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (जीवीसी) में भारत को एक मजबूत प्रतिस्पर्धी के रूप में स्थापित करके एनआईसीडीपी आवंटन के लिए तत्काल उपलब्ध उन्नत विकसित भूमि प्रदान करेगा। इससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए भारत में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करना आसान हो जाएगा। यह एक ‘आत्मनिर्भर भारत’ या स्वालंबी भारत बनाने के व्यापक उद्देश्य के अनुरूप है, जो बढ़े हुए औद्योगिक उत्पादन और रोजगार के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
10 लाख नौकरियां पैदा होंगी
एनआईसीडीपी से महत्वपूर्ण रोजगार के अवसर पैदा होने की उम्मीद है, जिसमें अनुमानित 10 लाख प्रत्यक्ष नौकरियां और नियोजित औद्योगीकरण के माध्यम से 30 लाख तक अप्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होंगी। इससे न केवल आजीविका के अवसर उपलब्ध होंगे, बल्कि उन क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान में भी योगदान मिलेगा जहां ये परियोजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं।
स्थायी विकास को मिलेगा प्रोत्साहन
एनआईसीडीपी के तहत परियोजनाओं को स्थायित्व पर फोकस करते हुए तैयार किया गया है। इसमें पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए आईसीटी-सक्षम उपयोगिताओं और हरित प्रौद्योगिकियों को शामिल किया गया है। गुणवत्तापूर्ण, विश्वसनीय और टिकाऊ बुनियादी ढांचा प्रदान करके सरकार का लक्ष्य ऐसे औद्योगिक शहर बनाना है जो न केवल आर्थिक गतिविधि के केंद्र हों, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के मॉडल भी हों।
एनआईसीडीपी के तहत 12 नए औद्योगिक नोड्स की मंजूरी भारत की वैश्विक विनिर्माण शक्ति बनने की यात्रा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। एकीकृत विकास, टिकाऊ बुनियादी ढांचे और निर्बाध कनेक्टिविटी पर रणनीतिक ध्यान देने के साथ ये परियोजनाएं भारत के औद्योगिक परिदृश्य को फिर से परिभाषित करने और आने वाले वर्षों में देश की आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए तैयार हैं।
इन नई मंजूरियों के अलावा, एनआईसीडीपी ने पहले ही चार परियोजनाओं को पूरा होते देखा है, और चार अन्य वर्तमान में कार्यान्वयन के अधीन हैं। यह निरंतर प्रगति भारत के औद्योगिक क्षेत्र को बदलने और एक जीवंत, टिकाऊ और समावेशी आर्थिक वातावरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
234 नए शहरों में निजी एफएम रेडियो शुरू करने को मंजूरी
इसके अलावा केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को निजी एफएम रेडियो चरण-3 नीति के तहत 234 नए शहरों में 730 चैनलों के लिए आरोही ई-नीलामी के तीसरे समूह के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसके लिए अनुमानित आरक्षित मूल्य 784.87 करोड़ रुपये आंका गया है। केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि मंत्रिमंडल ने एफएम चैनलों के लिए वार्षिक लाइसेंस शुल्क (एएलएफ) जीएसटी को छोड़कर सकल राजस्व का चार फीसदी वसूलने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है। यह 234 नए शहरों/कस्बों पर लागू होगा। 234 नए शहरों और कस्बों में निजी एफएम रेडियो की शुरुआत से इन क्षेत्रों में एफएम रेडियो की मांग पूरी होगी। ये अब भी निजी एफएम रेडियो प्रसारण से अछूते हैं। इससे मातृभाषा में नई और स्थानीय सामग्री उपलब्ध होगी। इसके जरिये रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। स्थानीय बोली और संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा।