
सिवनी मालवा (पवन जाट)
सिवनी मालवा तहसील की ग्राम पंचायत खपरिया के वार्ड क्रमांक एक स्थित एपी टोला गांव के आदिवासी ग्रामीण वर्षों से एक गंभीर बुनियादी समस्या का सामना कर रहे हैं। गांव के समीप बहने वाली इंदना–चंदना नदी आज भी ग्रामीणों के लिए विकास के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। नदी पर पुल अथवा किसी सुरक्षित वैकल्पिक मार्ग का अभाव होने के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि से जुड़ी मूलभूत आवश्यकताएं लगातार प्रभावित हो रही हैं।ग्रामीणों के अनुसार इस समस्या का सबसे गहरा असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ा है। एपी टोला गांव के बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रतिदिन नदी पार कर पहले काल्याखेड़ी और फिर खपरिया पहुंचना पड़ता है। नदी पार करना हमेशा जोखिम से भरा रहता है, खासकर बरसात के मौसम में जब जलस्तर बढ़ जाता है। इसी भय के कारण कई माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं। अभिभावकों का कहना है कि यदि रास्ते में कोई दुर्घटना हो जाए तो समय पर सहायता मिलना बेहद कठिन हो जाता है। परिणामस्वरूप कुछ बच्चों की पढ़ाई अनियमित हो गई है, वहीं कुछ बच्चों ने बीच में ही स्कूल जाना छोड़ दिया है।स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी चिंताजनक बताई जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में किसी के बीमार पड़ने पर एम्बुलेंस या अन्य वाहन सीधे गांव तक नहीं पहुंच पाते। मजबूरी में मरीजों को खटिया पर लिटाकर नदी पार कराना पड़ता है। कई बार यह स्थिति रात के समय या खराब मौसम में भी उत्पन्न हो जाती है, जिससे परिजनों की चिंता और परेशानी बढ़ जाती है।किसानों के लिए भी यह समस्या रोजमर्रा की चुनौती बनी हुई है। खाद, बीज और अन्य कृषि सामग्री बाजार या तहसील से लाने के बाद किसानों को भारी बोरियां अपनी पीठ पर उठाकर नदी पार करनी पड़ती हैं। वाहन गांव तक न पहुंच पाने के कारण अधिकतर ग्रामीण अपनी गाड़ियां काल्याखेड़ी गांव में ही खड़ी करते हैं। इससे किसानों का समय, मेहनत और खर्च तीनों बढ़ जाते हैं।गांव के भगवान सिंह, जयनारायण सिंह, अनारसिंह, मोहन सिंह, भारत सिंह सहित अन्य ग्रामीणों का कहना है कि वे कई बार संबंधित विभागों और जनप्रतिनिधियों को इस समस्या से अवगत करा चुके हैं। उन्हें हर बार आश्वासन तो मिला, लेकिन अब तक ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस समाधान दिखाई नहीं दिया है।ग्रामीणों का कहना है कि उनकी मांग अत्यधिक नहीं है। यदि फिलहाल पुल का निर्माण संभव नहीं है, तो कम से कम एक रपटा या सुरक्षित वैकल्पिक मार्ग ही बना दिया जाए, ताकि बच्चों की पढ़ाई, मरीजों का इलाज और किसानों का कामकाज सुगम हो सके।एपी टोला गांव की यह स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की कमी को एक बार फिर उजागर करती है। ग्रामीणों को उम्मीद है कि शासन-प्रशासन उनकी इस लंबे समय से चली आ रही समस्या पर गंभीरता से विचार करेगा और जल्द ही कोई व्यावहारिक समाधान निकलेगा। अब सवाल यह है कि आखिर कब तक आदिवासी ग्रामीण इस उपेक्षा को झेलते रहेंगे, या उनकी यह आवाज भी फाइलों में ही दबकर रह जाएगी।
