बच्चों को फ्री उपचार मुहैया कराने में MP के बड़े नगर फिसड्डी, शीर्ष पर कटनी, बालाघाट

 ग्वालियर : स्वास्थ्य योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रदेश के चार महानगरों का प्रदर्शन फिसड्डी है। हालात यह हैं कि इन महानगरों में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम को टानिक की जरूरत है। यही वजह है कि आरबीएसके (राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम) के शून्य से 18 वर्ष आयु के बच्चों व किशोरों को इलाज मुहैया कराने में भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर छोटे शहरों से फिसड्डी हैं।

बच्चों की जन्मजात विकृति दूर करने के लिए इस योजना में छोटे शहर कटनी, बालाघाट और रतलाम बाजी मार ले गए। आरबीएसके की रैकिंग रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ। चार महानगरों में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की स्थिति चिंताजनक है, जिससे साफ है कि गंभीरता से काम नहीं हो रहा है।

जन्मजात विकृति समेत कई बीमारियों को का इलाज

बच्चों व किशोरों को जन्मजात विकृति, किसी प्रकार की कमी, नेत्र रोग, त्वचा रोग, मानसिक या शारीरिक विकलांगता आदि बीमारियां का उपचार देने में पहले स्थान पर कटनी, दूसरे पर बालाघाट और तीसरे स्थान पर रतलाम रहा। वहीं बड़े शहरों में भोपाल 42, इंदौर 28, ग्वालियर 25 और जबलपुर 20वें स्थान पर आए हैं।

18 साल तक के बच्चों के इलाज में मदद

योजना के तहत जन्म से 18 साल तक के बच्चों व किशोरों को विभिन्न बीमारियों व विकलांगता को लेकर के ऑपरेशन के लिए मदद दी जाती है। इसी क्रम में ग्वालियर में अप्रैल से जून तक राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम योजना के तहत 93 से बच्चों के ऑपरेशन के लिए मदद मुहैया कराई गई है। पिछले वर्ष 285 बच्चों को मदद मिली।

निजी अस्पतालों में इलाज का खर्च उठाती है सरकार

इस योजना के तहत ऐसे बच्चे जिनके दिल में छेद है या दूसरी चिह्नित बीमारियों से ग्रसित हैं उन्हें मदद कराई जाती है। इसके लिए यदि सुविधाएं सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं हों तो निजी अस्पतालों में स्वास्थ्य विभाग बच्चों का इलाज करवाता है। इसके लिए जो खर्च आता है, वह स्वास्थ्य विभाग द्वारा वहन किया जाता है।

जागरूकता की कमी

इस योजना के तहत उपचार कराने को लेकर आमजन में जागरूकता की कमी है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जा रहा है।

कई लोगों को इस योजना की जानकारी तक नहीं है। जिससे वह अपने बच्चों को निश्शुल्क उपचार मुहैया कराने से वंचित रह जाते हैं। स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि वह महिला एवं बाल विकास विभाग व शिक्षा विभाग के साथ मिलकर जागरूकता लाने का प्रयास करेगा।

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