प्रतीक पाठक, नर्मदापुरम
आज 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी के साथ ही चार माह बाद फिर से शहनाई बजेगी। जिसे लेकर शहर के होटल, रिसोर्ट व मैरिज पैलेस की शुभ मुहूर्त के दिन की बुकिंग फुल हो चुकी है। खास बात यह है कि 23 नवंबर से लेकर 15 दिसंबर तक के 23 दिनों में शादी विवाह के लिए 13 शुभ मुहूर्त रहेंगे। यही कारण है कि फेस्टिवल सीजन खत्म होने के बाद भी बाजारों में रौनक बरकरार है। इस बार लोग शादी विवाह को लेकर जमकर खरीदारी कर रहे हैं।ज्योतिषाचार्य ने बताया कि वैदिक पंचांग के मुताबिक कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवंबर को रात 11:03 से शुरू होगी और इसका समापन 23 नवंबर रात 9:01 पर होगा. उदया तिथि के अनुसार देवउठनी एकादशी व्रत 23 नवंबर को रखा जाएगा.एकादशी के शुभ योग की बात करें तो ये दिन पूजा पाठ के लिए उत्तम माना जाता है. इस बार रवि योग, सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बनने जा रहे हैं. सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 11:55 से शुरू होगा. वहीं रवि योग सुबह 6:50 से शाम 5:16 तक रहेगा. इसके बाद सर्वार्थ सिद्धि योग शुरू हो जाएगा.ज्योतिषाचार्य ने बताया कि देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास समाप्त होगा. मान्यताओं के अनुसार चतुर्मास में भगवान विष्णु आराम करते हैं. शास्त्रों के अनुसार इस दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं.ज्योतिषाचार्य ने बताया कि देवउठनी एकादशी तिथि से चतुर्मास अवधि खत्म हो जाती है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु शयनी एकादशी को सो जाते हैं और वे इस दिन जागते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन जातक सुबह जल्द उठकर स्वस्छ वस्त्र पहनते हैं. भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं. शास्त्रों के अनुसार विष्णुजी के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने एकादशी को देवी वृंदा (तुलसी) से शादी की थीं. इस साल तुलसी विवाह 24 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा.ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पौराणिक मान्यताओँ के अनुसार भगवान विष्णु 5 माह की योग निद्रा के बाद इसी दिन जागते हैं. इसी कारण इस दिन को देवउठनी एकादशी कहा जाता है. ऐसे में भगवान विष्णु का आर्शीवाद पाने के लिए भक्त कई उपाय भी करते हैं. लेकिन आर्शीवाद पाने के साथ कुछ ऐसे नियम भी हैं, जिन्हें देवउठनी एकादशी के दिन भूलकर भी नहीं तोड़ना चाहिए।देवउठनी एकादशी पूजा विधि: ज्योतिषाचार्य ने बताया कि देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, पुष्प, फल, अर्घ्य और चंदर आदि अर्पित करें. भगवान की पूजा करके इन मंत्रों का जाप करें. उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदिम्।। उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे। हिरण्याक्षप्राघातिन् त्रैलोक्यो मंगल कुरु।। इसके बाद भगवान की आरती करें। वह पुष्प अर्पित कर इन मंत्रों से प्रार्थना करें. इसके बाद सभी भगवान को स्मरण करके प्रसाद का वितरण करें।