प्रतीक पाठक
नर्मदापुरम।
वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का प्राकट्य दिवस है। भगवान परशुरामजी का प्राकट्य सम्पूर्ण सृष्टि के लिए एक सन्देश है, अन्याय पर न्याय की जीत का, शौर्य और पराक्रम के प्रकटीकरण का, सत्य सनातन धर्म के संरक्षण का। इसलिए सम्पूर्ण ब्राह्मण समाज का दायित्व है कि पूरे सनातन धर्मावलम्बियों की सहभागिता से बड़े धूमधाम के साथ उत्सव को मनाएं। सर्व ब्राहमण समाज के पं. दिनेश तिवारी ने बताया की भगवान परशुराम की शोभायात्रा गुरूवार को शाम 4 बजे से सेठानी घाट से निकाली जाएगी सभी विप्र बंधुओं से अपील है कि अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होवे और भगवान परशुराम की शोभायात्रा को सफल बनाएं । उन्होंने कहा कि भगवान परशुराम परशु का प्रतीक है पराक्रम का राम पर्याय है सत्य सनातन का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक। परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। परशु में भगवान शिव समाहित हैं और राम में भगवान विष्णु। इसलिए परशुराम अवतार भले ही विष्णु के हों, किंतु व्यवहार में समन्वित स्वरूप शिव और विष्णु का है। पं. दिनेश तिवारी ने कहा कि मेरे मत में परशुराम दरअसल शिवहरि हैं। उनके दिव्य अस्त्र परशु प्राप्त करने के कारण वे राम से परशुराम हो गए। उन्होंने कहा कि परशुराम दरअसल परशु के रूप में शस्त्र और राम के रूप में शास्त्र का प्रतीक हैं। एक वाक्य में कहे तो परशुराम शस्त्र और शास्त्र के समन्वय का नाम है, संतुलन जिसका सन्देश है। अक्षय तृतीया को प्रकट हुए हैं, इसलिए परशुराम की शस्त्रशक्ति भी अक्षय है और शास्त्र संपदा भी अनंत है।ब्रह्मऋ षि दधीचि की अस्थियों से निर्मित विश्वकर्मा द्वारा अभिमंत्रित दो दिव्य धनुषों की प्रत्यंचा पर केवल परशुराम ही बाण चला सकते थे। शास्त्रों का मत है कि परशुराम ने सदैव अन्याय का संहार और न्याय का सृजन किया।